नई दिल्ली श्याम सुमनएक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जज ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस कर सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हालात सही नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायपालिका में बहुत सी ऐसी चीजें हो रही हैं जो वांछनीयता से नीचे हैं। संस्थान को नहीं बचाया गया तो देश में लोकतंत्र नष्ट हो सकता है। यदि न्यायपालिका की स्वतंत्रता नहीं रहेगी तो देश में लोकतंत्र नहीं बच सकता। सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम जज जे. चेलमेश्वर ने दोपहर 12 बजे अपने सरकारी आवास 4, तुगलक रोड पर अचानक प्रेस कांफ्रेंस की। उनके साथ जस्टिस रंजन गोगोई, मदन बी. लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ भी थे। चेलमेश्वर ने शुरुआत करते हुए कहा,‘यह कांफ्रेंस करने में हमें खुशी नहीं है। यह बहुत ही कष्टप्रद है। हमने दो माह पहले सीजेआई को पत्र लिखा था और अपनी शिकायत रखी थी कि महत्वपूर्ण मामले उनसे जूनियर जज को न दिए जाएं। लेकिन सीजेआई ने कुछ और ऐसे फैसले किए, जिससे और सवाल पैदा हुए।’ जज चेलमेश्वर ने कहा, इतना ही नहीं आज शुक्रवार को भी हम मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मिश्र से मिले और संस्थान को प्रभावित करने वाले मुद्दे उठाए, लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद हमारे सामने कोई विकल्प नहीं रह गया था। इसलिए हमने अपनी बात देश के सामने रखने का फैसला किया। कल लोग यह न कह दें कि हम चारों जज ने अपनी आत्मा बेच दी है। यह पूछने पर कि क्या यह मुलाकात गैंगस्टर सोहराबुदीन मुठभेड़ केस के ट्रायल जज बी.एच. लोया की मौत की जांच का मामला जस्टिस अरुण कुमार मिश्र (वरिष्ठता में 10वें नंबर) की पीठ को सौंपने के खिलाफ थी, जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि आप यह मान सकते हैं। उनका यह कदम सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई के खिलाफ बगावत जैसा नहीं है, इस सवाल पर जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- नहीं। हम अपनी बात रख रहे हैं और हमने देश को अपना कर्ज चुका दिया। यह पूछने पर कि इसके आगे अब क्या होगा, क्या वह सीजेआई के लिए महाभियोग की सिफारिश करेंगे, एक जज ने कहा कि इस पर देश को ही फैसला करने दीजिए। सुप्रीम संकट ीजिए
चीफ जस्टिस केस आवंटन में नियमों का पालन नहीं कर रहे हैंचीफ जस्टिस उस परंपरा से बाहर जा रहे हैं, जिसके तहत महत्वपूर्ण केसों में निर्णय सामूहिक तौर पर लिए जाते हैंसुप्रीम कोर्ट की अखंडता को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मामले भी चीफ जस्टिस बिना किसी वाजिब कारण के उन बेंचों को सौंप देते हैं, जो उनकी प्रेफेरेंस (पसंद) की हैं
आज जो कुछ भी हुआ उसे टाला जा सकता था। न्यायाधीशों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि मतभेदों को पूरी तरह समाप्त किया जाये और भविष्य में पूरा सद्भाव और परस्पर समझ बने। -के के वेणुगोपाल, अटार्नी जनरल
जब एमओपी संविधान पीठ (2016, इस पीठ में जस्टिस चेलमेश्वर और जोसेफ कूरियन थे) के फैसले का विषय था तो कोई दूसरी बेंच इसे कैसे देख सकती है
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