Sunday, January 28, 2018

INCOME TAX: आइए जानें, इनकम टैक्स बचाने के कौन-कौन से तरीके हैं और उनके नफे-नुकसान क्या हैं/ पूरी जानकारी ।

INCOMETAX: आइए जानें, इनकम टैक्स बचाने के कौन-कौन से तरीके हैं और उनके नफे-नुकसान क्या हैं/ पूरी जानकारी ।
इनकम टैक्स
7-7.7%
रिटर्न
9.9-11.9%
(5 साल में औसतन)
रिटर्न
पेंशन प्लान
लाइफ इंश्योरेंस पॉिलसी (LIC etc.)
नैशनल पेंशन स्कीम (NPS)
यूलिप (ULIP)
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम (SCSS)
नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट (NSC)
फिक्स्ड डिपॉजिट (ED)
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
सुकन्या समृद्धि योजना (SSY)
इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ELSS)
रो
15
13.62%
(3 साल में औसतन, भविष्य की गारंटी नहीं)
रिटर्न
4.5-5%
रिटर्न
7-10%
( पिछले 1 साल में)
रिटर्न
9.5%
(पिछले तीन साल में औसतन)
रिटर्न
टैक्स बचाने के 10 तरीके
एनपीएस के आने से इंश्योरेंस कंपनियों के पेंशन प्लान की मांग नहीं के बराबर रह गई है। नए यूलिप प्लान के चार्ज में जहां काफी गिरावट हुई है, वहीं इंश्योरेंस कंपनियों के पेंशन प्लान में रेट अब भी ऊंचे हैं। दिलचस्प बात यह है कि मच्योरिटी सम के आवंटन के मामले में ऐसे पेंशन प्लान के नियम काफी उदार हैं। एनपीएस इनवेस्टर्स के लिए फंड का 40 फीसदी हिस्सा एन्युइटी में लगाना जरूरी है। कुछ पेंशन प्लान में इस तरह की पाबंदियां नहीं हैं जबकि कुछ अन्य में सिर्फ 25 फीसदी हिस्सा एन्युइटी में रखने की जरूरत होती है। इसके अलावा, इस तरह के प्लान में फंड का सिर्फ 33 फीसदी हिस्सा टैक्स फ्री है, जबकि एनपीएस के मामले में 40 फीसदी रकम टैक्स फ्री होती है।
आरबीआई की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 65 साल से ऊपर की उम्र के लोगों की संख्या में 75 फीसदी की दर से ग्रोथ का अनुमान है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस आयु वर्ग के एक छोटे से हिस्से ने प्राइवेट पेंशन प्लान में बचत की है और कुल आबादी के एक बड़े हिस्से ने रिटायरमेंट के दौरान पर्याप्त फाइनैंशल कवरेज पक्का करने के लिए कदम उठाए हैं। इंश्योरेंस कंपनियों का मानना है कि एन्युइटी और पेंशन इनकम की टैक्स उलझनों के कारण लोग पेंशन प्लान में निवेश नहीं करते हैं। बजाज आलियांज के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर तरुण चुग ने बताया, ‘लोगों के रिटायरमेंट के लिए बचत नहीं करने की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन पेंशन प्लान से जुड़ा टैक्स का मामला निश्चित तौर पर एक मुख्य वजह है।’
फिलहाल, अगर कोई इन्वेस्टर मच्योरिटी पर एन्युइटी खरीदता है तो पेंशन प्लान का 66 फीसदी फंड टैक्सेबल होता है। यहां तक कि एन्युइटी से पेंशन को भी इनकम के तौर पर माना जाता है और उसी के हिसाब से टैक्स लगाया जाता है।
चुग कहते हैं, ‘आगामी बजट में दोनों टैक्स नियमों में यथासंभव ढील दी जानी चाहिए, जिससे पूरे पेंशन सेग्मेंट को बढ़ावा मिलेगा और भारतीयों को चिंतामुक्त रिटायरमेंट के लिए प्लानिंग करने में मदद मिलेगी।' ऐसे में आप अपनी सुविधा से एनपीएस या इंश्योरेंस कंपनियों के पेंशन प्लान में से कुछ भी चुन सकते हैं।
लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी टैक्स सेविंग ऑप्शंस की हमारी रैंकिंग में काफी नीचे आती हैं। लाइफ इंश्योरेंस किसी भी फाइनैंशल प्लानिंग का एक जरूरी हिस्सा है क्योंकि यह संबंधित शख्स के न रहने पर उसके सभी फाइनैंशल गोल्स को सुरक्षित करता है। लेकिन, इस मकसद के लिए टर्म इंश्योरेंस लेना चाहिए। हमें ऐसी पारंपरिक महंगी पॉलिसी नहीं खरीदनी चाहिए जो कि निश्चित अंतराल पर मनी बैक करती है या मैच्योरिटी पर बड़ा अमाउंट देती है। ट्रडिशनल पॉलिसी का रिटर्न बमुश्किल 4-5 पर्सेंट की बैठता है, लेकिन इन्वेस्टर्स इनकी ओर आकर्षित काफी होते हैं क्योंकि एजेंट आपको एक ऊंचा मच्योरिटी आंकड़ा देकर लुभाता है। इन्वेस्टर को यह पता नहीं चलता कि पैसे की एक टाइम वैल्यू होती है।
अगर कोई इंश्योरेंस पॉलिसी 20 साल में 40 लाख रुपये देती है तो 6 पर्सेंट के इन्फ्लेशन रेट से इसकी वैल्यू घटकर 12 लाख से भी कम रह जाती है। मनोज श्रीनिवास अन्य गोल्स के लिए पैसे बचाने में सफल नहीं रहे क्योंकि उन्होंने एक ऐसी पॉलिसी के लिए बेहद ऊंचे इंश्योरेंस प्रीमियम का भुगतान किया जो कि उनकी सालाना इनकम से भी कम का कवर देती है। उन्हें या तो इस पॉलिसी को सरेंडर कर देना चाहिए या इसे पेड-अप प्लान में तब्दील करा लेना चाहिए। इससे 1 लाख रुपये सालाना की रकम फ्री हो जाएगी जिसका इस्तेमाल किसी दूसरी जगह किया जा सकता है। 1 करोड़ रुपये का टर्म कवर करीब 10,000 रुपये से 14,000 रुपये सालाना का बैठेगा।
एनपीएस से तीन अलग-अलग सेक्शन में टैक्स बचत करने में मदद मिल सकती है। पहला, डेढ़ लाख रुपये तक के निवेश पर सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। दूसरा, सेक्शन 80सीसीडी (1बी) के तहत 50,000 रुपये तक का अडिशनल डिडक्शन लिया जा सकता है। तीसरा, अगर इंडिविजुअल के एनपीएस में उसकी बेसिक सैलरी का 10 पर्सेंट हिस्सा एंप्लॉयर जमा कराता है तो उस रकम पर टैक्स नहीं लगेगा।
तीन टैक्स बेनेफिट्स के चलते बहुत से लोगों ने पेंशन स्कीम में निवेश किया है। हालांकि बहुत-से लोगों ने इसे इसलिए छोड़ भी दिया कि एनपीएस पूरी तरह टैक्स फ्री नहीं है। मच्योरिटी पर मिलने वाली 40 पर्सेंट रकम ही टैक्स फ्री है। इसके अलावा एनपीएस की मच्योरिटी पर मंथली पेंशन के लिए 40 पर्सेंट रकम एन्युइटी में लगाना होता है। यह पेंशन इनकम मानी जाएगी और पूरी तरह टैक्सेबल होगी।
हालांकि बहुत से निवेशकों को इसका लॉक-इन पीरियड हतोत्साहित करता है। कुछ खास मौकों को छोड़कर सामान्य हालात में एनपीएस इन्वेस्टमेंट को रिटायरमेंट से पहले नहीं निकाला जा सकता। हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि लॉन्ग लॉक-इन पीरियड तो फायदे की चीज है। विलिस टावर्स वॉटसन साउथ एशिया के हेड ऑफ रिटायरमेंट कुलीन पटेल कहते हैं, ‘अगर मकसद बुढ़ापे के लिए बचत करना है तो समय से पहले निकासी को रोकना जरूरी है।’
जानने वाली बात यह है कि इक्विटी और डेट मार्केट में पिछले तीन साल से बने तेजी के माहौल में एनपीएस ने अच्छा रिटर्न दिया है। इक्विटीज में मैक्सिमम 50 पर्सेंट निवेश करने वाले निवेशकों को सबसे ज्यादा रिटर्न मिला है। लेकिन यह परफॉर्मेंस आने वाले महीनों में बरकरार नहीं रह पाएगी। NPS फंड ने अपनी रकम लॉन्ग टर्म बॉन्ड में लगा रखी है जिनसे हाल के महीनों में कुछ खास रिटर्न नहीं मिला है। इक्विटी मार्केट ओवरवैल्यूड नजर आ रहा है। इसके बावजूद आपको एनपीएस पर प्योर डेट प्रॉडक्ट्स से ज्यादा ही रिटर्न मिलेगा।
एनएससी का इंटरेस्ट रेट घटाकर 7.6 फीसदी कर दिया गया है, लेकिन यह अब भी बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा है। कुछ साल पहले बैंक डिपॉजिट पर ब्याज दर 9-9.5 फीसदी थी और इस वजह से एनएससी लोगों की पसंद नहीं रह गया था, लेकिन अब डिपॉजिट रेट 6.5-7 फीसदी रह गया है। हालांकि बैंक डिपॉजिट पर वरिष्ठ नागरिकों के लिए ब्याज दर ज्यादा है।इसके अलावा, एनएससी के तहत हासिल ब्याज की रकम को आगे के सालों में इनकम टैक्स की धारा 80सी के तहत छूट मिलती है। यह कुछ इस तरह से काम करता है। फर्ज कीजिए कि एक इन्वेस्टर ने जनवरी 2018 में 50,000 रुपये का एनएससी खरीदा। एक साल बाद निवेश पर 3800 रुपये का ब्याज मिलेगा। इन्वेस्टर साल 2018-19 के लिए 3800 रुपये का डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं। इसके अगले साल आपको इस इन्वेस्टमेंट पर 4,100 रुपये का ब्याज मिलेगा। इसके लिए 2019-20 में डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। यह 5 फीसदी स्लैब के दायरे में आने वाले निवेशकों के लिए खासतौर पर उपयोगी है, जो सेक्शन 80सी के तहत निवेश की सीमा का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं।
डिस्ट्रीब्यूटर्स और इंश्योरेंस कंपनियों की कोशिशों के बावजूद यूलिप पर एक्सपर्ट्स की राय में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। इन्वेस्टर्स अभी भी इन्हें बेहद महंगा मान रहे हैं। हालांकि बीते समय में यूलिप ने क्या रिटर्न दिया, यह उसे भूलने का वक्त है। बीमा कंपनियों के लॉन्च किए जाने वाले नए यूलिप कम लागत वाले हैं। इससे इन्वेस्टर्स को अच्छा रिटर्न मिल रहा है। मॉर्निंगस्टार के आंकड़े बताते हैं कि अग्रेसिव यूलिप प्लान्स ने गुजरे एक साल में 20 पर्सेंट से ज्यादा रिटर्न दिया है।
हालांकि यह इक्विटी म्यूचुअल फंड्स के इन्वेस्टर्स को मिले 30-35 पर्सेंट के रिटर्न के मुकाबले बहुत अच्छा तो नहीं ही है। गुजरे पांच साल में यूलिप से 11.96 पर्सेंट रिटर्न मिला है और यह इक्विटी फंड्स के 2012 के बाद से दिए गए रिटर्न के मुकाबले कुछ भी नहीं है। इसके अलावा, यूलिप के कुछ चार्ज एनएवी से घटाए नहीं गए हैं। ऐसे में इन्वेस्टर्स के लिए इनसे मिलने वाला रिटर्न शायद और कम रहेगा। वैसे, यूलिप्स एक मामले में म्यूचुअल
फंड्स से अलग हैं और वह यह कि इक्विटी से
डेट या डेट से इक्विटी पर स्विच करने में टैक्स नहीं देना पड़ता है।
इंश्योरेंस पॉलिसी होने से इन प्लान्स से इनकम और कैपिटल गेन्स सेक्शन 10 (10डी) के तहत टैक्स फ्री है। यह यूलिप्स को ऐसे इन्वेस्टर्स के लिए आसान रीबैलेंसिंग टूल बनाता है जो कि हर साल अपने पोर्टफोलियो बदलते रहते हैं। ये ऐसे इन्वेस्टर्स के लिए भी काम के हैं, जो अपना पैसा डेट फंड्स में तो लगाना चाहते हैं, लेकिन शॉर्ट-टर्म गेन्स के चलते ऐसा नहीं करते।
डेट और डेट-ओरिएंटेड फंड्स में लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स का मिनिमम पीरियड 1 साल से बढ़ाकर 3 साल कर दिया गया है। अगर इन्हें तीन साल से कम वक्त के लिए होल्ड किया जाता है तो गेन्स को आपकी इनकम में जोड़ दिया जाता है और इस पर नॉर्मल रेट पर टैक्स लगता है। लेकिन, यूलिप्स पर कोई शॉर्ट-टर्म गेन्स नहीं है। आप शॉर्ट-टर्म मनी को अपने यूलिप के लिक्विड फंड में टॉप-अप फैसिलिटी का इस्तेमाल कर लगा सकते हैं।
किसी यूलिप में क्या देखना चाहिए
चार्ज: यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है। कुछ चार्ज एनएवी में शामिल होते हैं जबकि अन्य यूनिट्स को घटाने के तौर पर लिए जाते हैं। ब्रॉशर में लिखे सभी चार्जेज पर अच्छे से नजर डालें।
फंड ऑप्शंस: अलग-अलग फंड ऑप्शंस पर नजर रखें। तीन बेसिक फंड्स होते हैं: इक्विटी, डेट और लिक्विड। हालांकि कुछ इंश्योरेंस कंपनियां हाइब्रिड फंड्स और अन्य ऑप्शंस भी देती हैं।
स्विच करना: एक ऑप्शन से दूसरे ऑप्शन में स्विच करने पर यूलिप कितना पैसा लेगा, इस पर नजर डालिए। आमतौर पर एक साल में 3-4 स्विच फ्री होते हैं, हालांकि कुछ 12 तक फ्री स्विच ऑफर करते हैं।
विदड्रॉल और टॉप अप: टॉप अप इन्वेस्टमेंट्स और विदड्रॉल के नियमों को जरूर पढ़ें।

कवर: यह पक्का करें कि आपका यूलिप केवल सम एश्योर्ड देगा या फंड वैल्यू भी देगा। कुछ यूलिप्स केवल सम एश्योर्ड ही देते हैं। हालांकि इनका प्रीमियम भी कम होता है।
इनके इंटरेस्ट रेट्स में पिछले कुछ समय में बड़ी गिरावट आई है और ब्याज भी टैक्सेबल है। इसके बावजूद टैक्स-सेविंग बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट्स अब भी ऐसे लोगों के लिए अच्छी पसंद बने हुए हैं जो कि अपनी टैक्स प्लानिंग को आखिरी वक्त तक के लिए टालते रहते हैं।
इस तरह के टैक्सपेयर्स के लिए नेटबैंकिंग अच्छी सुविधा है। यहां तक कि अगर बैंक ब्रांच किसी दिन बंद है तब भी आप चंद मिनटों में अपनी टैक्स प्लानिंग कर सकते हैं। इसके लिए आपको एक टैक्स-सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट खोलने की जरूरत है और इसे आप अपनी कंपनी में इन्वेस्टमेंट के प्रूफ के तौर पर दिखा सकते हैं। हम बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट्स की सलाह एक सीधी वजह से दे रहे हैं। वह यह है कि विनायक जैसों का इसमें नुकसान नहीं है। निश्चित तौर पर इनकम टैक्सेबल है और टैक्स लगने के बाद रिटर्न बमुश्किल 5.5 पर्सेंट बैठेगा, लेकिन कम से कम विनायक को कम रिटर्न वाली इंश्योरेंस पॉलिसी या बहुत फायदा नहीं देने वाला पेंशन प्लान तो नहीं खरीदना पड़ेगा। ये फिक्स्ड डिपॉजिट्स सीनियर सिटिजंस के लिए भी अच्छे हैं, जो सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम की 15 लाख रुपये की ऊपरी सीमा पर पहुंच चुके हैं और अब पीपीएफ अकाउंट में लॉन्ग-टर्म के लिए पैसा लॉक नहीं करना चाहते।
स्मॉल सेविंग्स पर इंटरेस्ट रेट में कटौती की गई है, लेकिन सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम को इससे बाहर रखा गया है। यह स्कीम 8.3 पर्सेंट का रिटर्न दे रही है और यह रिटायर्ड लोगों के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। इस स्कीम की अवधि पांच साल है, जिसे और तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। हालांकि इसमें प्रति व्यक्ति 15 लाख रुपये के कुल इन्वेस्टमेंट की सीमा है। यह स्कीम केवल 60 वर्ष से ऊपर के इन्वेस्टर्स के लिए है। कुछ मामलों में इन्वेस्टर के जल्दी रिटायरमेंट लेने और कोई अन्य नौकरी न करने पर न्यूनतम आयु घटाकर 55 साल की जाती है। इसके अलावा सैन्य कर्मियों के लिए आयु की कोई सीमा नहीं है। इसमें तय अवधि से पहले भी बाहर निकलने की सुविधा है। अगर इन्वेस्टर दो वर्ष से पहले स्कीम से बाहर निकलता है तो उसे अकाउंट में बैलेंस का 1.5 पर्सेंट चुकाना होता है। दो साल के बाद पेनल्टी बैलेंस पर 1 पर्सेंट की है।
स्मॉल सेविंग्स के इंटरेस्ट रेट सेकेंडरी मार्केट में गवर्नमेंट बॉन्ड रिटर्न से जुड़े हैं। पब्लिक प्रॉविडेंट फंड की ब्याज दर पिछले दो सालों में बॉन्ड यील्ड में गिरावट के कारण नीचे आई हैं। हाल ही में PPF रेट में 0.20 पर्सेंट की कटौती की गई थी और आने वाले महीनों में यह और गिर सकता है। रेट कम होने के बावजूद अडवाइजर्स का कहना है कि पीपीएफ इन्वेस्टमेंट का एक अच्छा जरिया है क्योंकि इसमें इंटरेस्ट टैक्स फ्री है। इस वजह से यह फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में बेहतर है। फिक्स्ड डिपॉजिट पर इंटरेस्ट टैक्सेबल है, जिससे सबसे ऊंचे टैक्स ब्रैकेट में आने वालों के लिए रिटर्न घटकर केवल 5 पर्सेंट रह जाता है।
दूसरी ओर, कंस्यूमर इन्फ्लेशन 4 पर्सेंट है और इसे देखते हुए पीपीएफ में 3 पर्सेंट से ज्यादा का रियल रिटर्न मिलता है। प्लानरूपी इन्वेस्टमेंट सर्विस के फाउंडर, अमोल जोशी कहते हैं, ‘यह एक अच्छा विकल्प है, जो एश्योर्ड रिटर्न देता है। इन्वेस्टर्स को इस लॉन्ग-टर्म टैक्स फ्री प्रॉडक्ट का फायदा लेना जारी रखना चाहिए।’
रिटर्न और टैक्सेबिलिटी के अलावा पीपीएफ सेफ्टी, फ्लेक्सिबिलिटी और इन्वेस्टमेंट में आसानी के लिहाज से भी बेहतर है। पीपीएफ अकाउंट किसी पोस्ट ऑफिस या बैंक खोला जा सकता है। इसमें डिपॉजिट पूरे वर्ष किया जा सकता है, लेकिन इन्वेस्टर्स को एक वर्ष में कम से कम 500 रुपये जमा करने होते हैं।
हालांकि, सैलरीड टैक्सपेयर्स के लिए एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड (EPF) के तौर पर इससे बेहतर विकल्प मौजूद है। ईपीएफ में योगदान सैलरी से जुड़ा होता है, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए वॉलेंटरी प्रॉविडेंट फंड (VPF) का इस्तेमाल कर सकते हैं। वीपीएफ पर 2016-17 के लिए 8.65 पर्सेंट का इंटरेस्ट रेट मिला है। इसमें योगदान पर भी टैक्स बेनेफिट मिलता है। लेकिन यह विकल्प केवल फाइनैंशल ईयर की शुरुआत या अक्टूबर में चुना जा सकता है।
जिन टैक्सपेयर्स की 10 साल से कम उम्र की बेटी है, उनके लिए सुकन्या समृद्धि योजना बचत का अच्छा तरीका हो सकती है। हालांकि इस पर इंटरेस्ट रेट घटाकर 8.1% कर दिया गया है फिर भी यह पीपीएफ से ज्यादा ही है। पीपीएफ की तरह ही इससे मिलने वाला इंटरेस्ट टैक्स फ्री होगा और इसके तहत सालाना डेढ़ लाख रुपये जमा कराए जा सकते हैं। यह खाता किसी भी डाकघर या सरकार की तरफ से चुने गए बैंक में 1000 रुपये के न्यूनतम निवेश से खोला जा सकता है। पैरंट्स दो बेटियों के लिए खाता खुलवा सकते हैं, लेकिन इसमें सालाना डेढ़ लाख से ज्यादा रकम जमा नहीं की जा सकती।
कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि सुकन्या स्कीम बच्चों की पढ़ाई-शादी जैसे खर्चों के लिए बचत करने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है। उनका यह कहना सही है क्योंकि इक्विटी बेस्ड ऑप्शंस ऊंचा रिटर्न दिला सकते हैं। इसलिए वे निवेशकों को यह सलाह देते हैं कि वे बच्चों के बड़े लक्ष्यों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना का इस्तेमाल इक्विटी फंड्स जैसे दूसरे इन्वेस्टमेंट के साथ मिलाकर करें। इसमें अच्छी बात यह है कि इस स्कीम को बच्चियों से जोड़ा गया है जो लोगों में बचत का भाव पैदा करता है। दूसरी स्कीमों से मच्योरिटी पर मिलने वाली रकम अक्सर दूसरे कामों में खर्च हो जाती है, लेकिन सुकन्या स्कीम से पैरंट्स को बेटियों की पढ़ाई-लिखाई और उनकी शादी के लिए बचत करने को बढ़ावा मिलता है।
साल 2017 इक्विटीज के लिए शानदार रहा और नए साल में भी रैली जारी है। ऐवरेज ईएलएसएस फंड 2017 में 36 पर्सेंट चढ़े और यहां तक कि लॉन्ग टर्म परफॉर्मेंस भी काफी अच्छी रही। इसने पिछले पांच वर्षों में 18 पर्सेंट का कंपाउंडेड रिटर्न दिया है। चार साल में निवेशकों की रकम इन फंड्स ने दोगुनी कर दी। यही नहीं, रिटर्न टैक्स-फ्री है क्योंकि इक्विटी फंड्स से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर टैक्स नहीं लगता है।
ईएलएसएस फंड आकर्षक लगते तो हैं, लेकिन इनके लिहाज से अभी मुश्किल यह है कि मार्केट ऑल टाइम हाई पर है। ऐसे में कई अनालिस्ट निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं। दूसरों का कहना है कि इक्विटीज से रिटर्न की उम्मीद घटाने की जरूरत नहीं है। अभी मार्केट्स के ऊंचे लेवल को देखते हुए इक्विटी फंड्स से हालांकि पिछले 1-2 साल का प्रदर्शन 2018 में दोहराने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।
कुछ निवेशकों ने मार्केट के ऊंचे स्तर पर होने के कारण ईएलएसएस फंड्स में अपने एसआईपी रोक दिए हैं। मुंबई के अभिषेक तिवारी कहते हैं, ‘मार्केट में करेक्शन आने के बाद मैं एसआईपी दोबारा शुरू करूंगा।’ हमारा मानना है कि कुछ महीनों के लिए एसआईपी रोकने से तिवारी के ओवरऑल रिटर्न पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। तिवारी को एसआईपी जारी रखना चाहिए।
इसके साथ ही विनायक जैसे निवेशकों को एक बार में ईएलएसएस में बड़ी रकम लगाने से परहेज करना चाहिए। उन्हें इस सप्ताह टैक्स सेविंग ऑप्शंस में 1.16 लाख रुपये निवेश करने हैं और एक बार में पूरी रकम ईएलएसएस में लगाना रिस्की हो सकता है। बेहतर होगा कि वह इस समूची रकम का निवेश 2-3 महीनों में करें। हालांकि उनके पास ज्यादा समय तो है नहीं, लिहाजा इस साल ईएलएसएस के बजाय उन्हें टैक्स बचाने के कुछ दूसरे विकल्प चुनने चाहिए। ईएलएसएस निवेशकों को इसके अलावा कुछ और बातों पर ध्यान देना चाहिए।
ईएलएसएस एक जैसे टैक्स बेनेफिट्स देते हैं, लेकिन ऐसे सभी फंड्स एक जैसे नहीं होते हैं। कुछ ईएलएसएस तो अपने पास जमा रकम का एक बड़ा हिस्सा स्मॉल और मिड कैप शेयरों में लगाते हैं। शॉर्ट और मीडियम टर्म में इसमें जोखिम हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में फायदेमंद भी। दूसरे फंड्स अपेक्षाकृत ज्यादा कंजर्वेटिव होते हैं और अपना पोर्टफोलियो स्टेबल लार्ज कैप शेयरों के आधार पर बनाते हैं। एक्सपर्ट से मिलेंगे तो वे आपको ईएलएसएस फंड्स को तीन बड़ी सब-कैटेगरीज में बांटकर देंगे। रिस्क उठाने की अपनी क्षमता के आधार पर इनमें से चयन कर लें।
किसी फंड के शॉर्ट टर्म परफॉर्मेंस के आधार पर फैसला न करें। रिटर्न की स्टेबिलिटी ज्यादा अहम होती है। इन्वेस्ट करने से पहले स्कीम के तीन और पांच साल की परफॉर्मेंस पर गौर करें। छोटे निवेशक अक्सर ईएलएसएस फंड्स को शॉर्ट टर्म इनवेस्टमेंट के रूप में देखते हैं और तीन साल के लॉक-इन पीरियड के बाद एग्जिट कर जाते हैं। ईएलएसएस फंड्स को दरअसल रेगुलर इक्विटी फंड्स के रूप में देखना चाहिए, जिन्हें लॉन्ग टर्म तक होल्ड किया जाना चाहिए।
अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं तो डिविडेंड ऑप्शन न चुनें। डिविडेंड दरअसल प्रॉफिट बुक करने का एक रास्ता है क्योंकि मिलने वाली रकम एनएवी से घटा दी जाती है। डिविडेंड का रीइनवेस्टमेंट करना तो और भी बुरा है। जब भी फंड डिविडेंड देता है और उस रकम को आपके अकाउंट में दोबारा निवेश करता है तो तीन साल का लॉक-इन पीरियड फिर शुरू हो जाता है। इस तरह आप लगातार लॉक-इन पोजिशन में रहते हैं।
हन विनायक टैक्स सेविंग के लिए कुछ इन्वेस्टमेंट करना चाह रहे थे। उन्हें टैक्स बचाने के लिए ईएलएसएस (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स) में निवेश करने की सलाह दी गई। लेकिन उनके बैंक मैनेजर का कहना है कि बीमा पॉलिसी खरीदना इससे बेहतर रहेगा जबकि विनायक के पिता चाहते हैं कि भरोसेमंद पीपीएफ को चुना जाए। बेंगलुरु के सॉफ्टवेयर प्रफेशनल विनायक अब दुविधा में पड़ गए हैं।
हालांकि विभिन्न टैक्स सेविंग के तरीकों की तुलना कर अगर इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग की जाए तो विनायक की दुविधा खत्म हो सकती है। रिटर्न, सेफ्टी, फ्लेक्सिबिलिटी, लिक्विडिटी (पैसा निकालने की सुविधा), कॉस्ट, ट्रांसपैरेंसी, निवेश में सहूलियत और इनकम टैक्सेबिलिटी जैसे आठ अहम मानकों पर 10 टैक्स सेविंग तरीकों का आकलन हम यहां कर रहे हैं। इन पर नजर डालने से पता चलता है कि विनायक को क्यों अपने बैंकर की राय नहीं माननी चाहिए। टैक्स बचाने के लिहाज से बीमा पॉलिसी खरीदना बेकार आइडिया है। हालांकि कुछ मानते हैं कि इंश्योरेंस प्लान से भले ही 4-5 पर्सेंट रिटर्न ही मिलता है, लेकिन इनसे बचत का अनुशासन भी आता है, जो लंबी अवधि में संपत्ति बनाने के लिए जरूरी है। पॉलिसीधारक अपनी पॉलिसी को बनाए रखने के लिए 20-25 साल तक लगातार प्रीमियम जमा करते हैं और मच्योरिटी पर बड़ी रकम उन्हें मिलती है। इसमें कोई शक नहीं है कि बीमा पॉलिसी ने लोगों को प्रॉपर्टी बनाने, बच्चों की शिक्षा का इंतजाम करने और रिटायरमेंट के बाद आरामदायक जीवन जीने में मदद की है।
दूसरी ओर ईएलएसएस ने हाल के बरसों में शानदार रिटर्न दिए हैं, लेकिन कुछ ही निवेशक इनमें लंबी अवधि तक निवेश करते हैं। एम्फी के डेटा के अनुसार, इक्विटी फंड्स में छोटे निवेशकों की ओर से किए जाने वाले निवेश का लगभग 35 पर्सेंट हिस्सा सालभर में भुना लिया जाता है, बाकी 17 पर्सेंट दो साल के भीतर भुना लेते हैं। केवल 48 पर्सेंट ही दो साल से ज्यादा समय तक बनाए रखते हैं। ऐसे में ईएलएसएस फंड्स बहुत अच्छा रिटर्न दे सकते हैं, लेकिन अगर आप तीन साल के लॉक-इन पीरियड से पहले निकल जाएंगे तो अच्छा रिटर्न नहीं बना पाएंगे। आइए, विस्तार से इनके बारे में जानते हैं।
आपने मौजूदा फाइनैंशल ईयर 2017-18 के लिए इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग कर ली है/ अगर आपकी आमदनी 3 लाख रुपये से ज्यादा है तो यह काम 31 मार्च तक करना आपके लिए जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया तो आपको इनकम टैक्स देना होगा। अगर 31 मार्च से पहले इन्वेस्टमेंट कर लेंगे तो बाद में इनकम टैक्स रिटर्न भरकर टीडीएस का पैसा वापस ले सकते हैं।

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